BANKELAL AUR CHOR KHOPDI

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Printed
BANKELAL AUR CHOR KHOPDI
Code: GENL-0442-H
Pages: 32
ISBN: 9788184918489
Language: Hindi
Colors: Four
Author: Tarun Kumar Wahi
Penciler: Bedi
Inker: N/A
Colorist: N/A
Paper: Plain
Condition: Fresh
Price: Printed
Rs. 50.00
Description विशालगढ़ की खोज में भटकते बांकेलाल और राजा विक्रम सिंह का अंगविकार शाप से अभी पीछा नहीं छूटा था कि संकट बनकर आ गया चड्डी पुर का राजा बनियान, जिनको खोज थी खोपड़ी चोर की बांकेलाल और विक्रम सिंह को ही समझ लिया गया खोपड़ी चोर और उन्हे नाक से पकड़ कर कैद मे डाल दिया गया। बांकेलाल अपमान से जल उठा। किन्तु तभी राजा बनियान की भी हो गई खोपड़ी चोरी! अब विक्रम सिंह या बांकेलाल की खोपड़ी राजा की कटी खोपड़ी के स्थान पर लगाई जानी थी ऋषि भंगेड़ी के शाप से विक्रम सिंह की खोपड़ी तो हो गई गायब। अब बचा बेचारा बांकेलाल। हुण फेर बांके लाल दा की होऊ!

Reviews

Thursday, 13 February 2014
A good story of Bankelal with good artwork
Prince Jindal
Monday, 10 February 2014
I got a bit confused while reading this one 'coz of the complexity of the story though it was good. Artwork was good as ever.
Rajal Sharma
Saturday, 08 February 2014
विशालगढ़ की तलाश में दर दर भटक रहे और विक्रमसिंह को मिले अंग भंग होने के शाप को झेल रहे बांकेलाल और विक्रमसिंह आ पहुंचे चड्डीपुर जहाँ मचा हुआ था आतंक खोपड़ी चोर का जो वहां के निवासियों की खोपड़ी चुरा ले जाता। चड्डीपुर के राजा बनियान ने बांकेलाल और विक्रमसिंह को ही समझ लिया खोपड़ी चोर और डाल दिया कैद खाने में। इधर खोपड़ी चोर अंगोछा सम्राट कच्छाराज जो खोपड़ी की चोरी करवा रहा था ताकि उसकी मदद से अपने भाई को खोपड़ी दिला सके। उसने खोपड़ी चोर बेधड की मदद से चुरा ली राजा बनियान की ही खोपड़ी। इधर बांकेलाल निकल भागा कैदखाने से और जा पहुंचा खोपड़ी चोरों के ठिकाने। और बांकेलाल की शैतानी खोपड़ी में कुलबुलाने लगी एक शैतानी योजना।
Mukesh Gupta
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